राम मंदिर का इतिहास: Ayodhya Mandir ki History in Hindi. 1528-2024

Ayodhya Mandir ki History in Hindi
Ayodhya Mandir ki History in Hindi

Ayodhya Mandir ki History in Hindi: 9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के पक्ष में आया। यह इतना आसान नहीं था, राम भक्तों को न्याय दिलाने में 500 साल का वक्त लगा। जहां कई राम प्रेमियों ने राम के लिए अपना बलिदान दे दिया। यह कहानी नहीं सच्चाई है सालों दर साल चले संघर्ष की अटूट विश्वास की और पुनर्निर्माण की।

Ayodhya Mandir ki History in Hindi

राम राम सभी को: आज हम बात करेंगे राम मंदिर के इतिहास के बारे में, जहां अनेकों भक्तों ने राम के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। उनके संघर्ष, मंदिर के पुनर्निर्माण की और साथ ही 22 जनवरी को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा की।

राम भगवान के जल समाधी लेने के कई सालो बाद जब अयोध्या के कई मंदिर पुराने हो रहे थे तब भगवान श्री राम के पुत्र कुश ने अयोध्या में श्री राम जी के कई मंदिर बनवाए। 

केवल अयोध्या में ही सीताराम के 3000 मंदिर थे पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व इनमें से कई मंदिरों की स्थिति खराब होने लगी और इसी समय के अंतराल में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या आए और उन्होंने इनमें से कई मंदिरों को ठीक करवाया और फिर आने वाले कई सालों तक मंदिर यूं ही बने रहे।

राम मंदिर का विध्वंश 

 साल 1526 में बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच युद्ध होता है। 1528 तक बाबर की सेना अयोध्या पहुंच जाती है और माना जाता है कि बाबर के कहने पर उनके सेनापति मीर बाकी ने राम मंदिर को तुड़वा कर उसकी जगह पर एक मस्जिद बनवा दिया। जिसको बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाने लगा। इतना होने के बाद 150 साल तक सब वैसा ही बना रहा। यह वही दौरान है जब भारत पर मुगल शासन की जड़े बहुत मजबूत और गहरी थी।

बाबरी मस्जिद बनने के तकरीबन 190 सालों बाद साल 1717 में राजा जय सिंह द्वितीय जिनके मुगल संबंध भी ठीक थे और जिन्हें हिंदुओं और अयोध्या के मायने पता थे वह कोशिश करते हैं कि मस्जिद और उसके आसपास वाली जगह उनको मिल जाए मगर सब असफल रहता है। 

लेकिन वह मस्जिद के पास ही एक राम चबूतरा बनवा देते हैं, जहां हिंदू पूजा और अर्चना कर सके। ज्योग्राफर जोसेफ थेलर ने भी अपनी रिपोर्ट में राम चबूतरा होने की बात बताई है। यह वही समय था जब मुसलमान मस्जिद के अंदर नमाज पढ़ते थे और हिंदू बाहर राम चबूतरे पर पूजा किया करते थे।

हिंदू संगठनों का दावा!

 मंदिर गिराए जाने के 250 साल बाद भी हिंदू इस बात को भुल नहीं पाए थे कि जिस जगह राम जन्मस्थान था। अब वहां मंदिर नहीं बल्कि एक मस्जिद है।

साल 1813 में पहली बार हिंदू संगठनों ने यह दावा किया कि बाबर ने 1528 में श्री राम जी का मंदिर ध्वस्त किया और उस जगह पर एक मस्जिद बनवाई थी। और इस दावे ने देश की सांस्कृतिक और राजनीतिक परिपेक्ष में अनेक महत्त्वपूर्ण सवाल सामने खड़े कर दिए।

 कई अंग्रेज अधिकारियों ने भी मस्जिद में हिंदू मंदिर जैसी कलाकृतियों के मिलने का जिक्र किया था।

 साल 1838 में मोंटगो मेरी मार्टिन ने एक रिपोर्ट दी जिसमें यह बताया गया कि मस्जिद में जो पिलर्स हैं, वह मंदिर से ही लिए गए हैं। रिपोर्ट सामने आने के बाद काफी हंगामा हुआ। हिंदुओं के दावे के बाद विवादित जमीन पर अब नमाज ही नहीं पूजा भी होने लगी जिससे माहौल और तनावपूर्ण हो गया।

निर्मोही अखाड़े ने बाबरी मस्जिद को अपने नियंत्रण में ले लिया और 1855 में आधिकारिक तौर पर बाबरी मस्जिद को दो भागों में बांट दिया मुसलमानों को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत 1855 के बाद मिली पर अब हिंदू अंदर नहीं जा सकते थे।

 और तभी हिंदुओं ने मस्जिद की मुख्य गुंबद से 150 फीट दूर बनाए राम चबूतरे पर पूजा और अर्चना शुरू कर दी। इसी के चलते साल 1857 में निहंग सिखों ने हिंदू संतों के साथ मिलकर मस्जिद के अंदर घुसकर पूजा और हवन करवाया आज से कुछ 138 साल पहले साल 1885 में यह मामला अदालत तक पहुंचा तब निर्मोही अखाड़े के मांत्र कुवर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की अर्जी डाली जिसे कोर्ट ने ठुकरा दिया। 

फिर साल 1934 में अयोध्या में फिर दंगे होते हैं बाबरी मस्जिद की एक दीवार टूट जाती है। जिसका पुनर्निर्माण कराया जाता है पर वहीं नमाज बंद करा दी जाती है इस दौरान अंग्रेजों का शासनकाल था, उनके अजेंडा में राम मंदिर को लेकर कोई पहलू नहीं था ना तो संघ इतना मजबूत था और ना ही मीडिया और ना धार्मिक संगठनों के लिए कोई लाग बंदी थी फिर भी हिंदुओं में भक्ति की बौछार थी जो बाबर के 400 साल बाद भी राम मंदिर के लिए अपने हक की लड़ाई लड़ रहे थे।

देश की आजादी के बाद बदला मंजर

 1947 में देश की आजादी के बाद मस्जिद का समय सीमित खुलता था और राम चबूतरे पर भगवान श्री राम की मूर्ति स्थापित थी। जहां लोग पूजा किया करते थे लेकिन देश आजाद होने के बाद भी राम मंदिर के बनाए जाने की उम्मीद का माहौल नहीं था। फिर 1949 में कुछ ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने लोगों को हैरान कर दिया।

 23 दिसंबर 1949 को सुबह विवादित ढांचे के अंदर घंटियों की आवाज आने लगती है, जिससे पता चलता है कि वहां श्री राम जी की पूजा हो रही है। हिंदू पक्ष दावा करता है कि रात को अचानक मंदिर में प्रभु श्री राम की मूर्ति प्रकट हो गई। जबकि मुसलमान पक्ष कहता है कि मूर्ति को रात के अंधेरे में जबरन रखा गया। 

इस घटना के बाद दोनों पक्ष के लोग वहां जुट जाते हैं और मामला प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पास पहुंच जाता है। वहां के मैजिस्ट्रेट केग नायर को आदेश दिया जाता है कि मूर्ति को वहां से हटाया जाए, जिस पर उन्होंने हाथ खड़े कर दिए और कहा कि भीड़ इतनी है की मूर्ति हटाई गई तो स्थिति बेकाबू हो सकती है। 

27 दिसंबर को केके नायर के पास दोबारा वही आदेश जाता है, जिसके जवाब में वह इस्तीफा दे देते हैं। इस्तीफे के साथ वह सरकार को यह सलाह भी देते हैं कि मूर्ति को हटाने की बजाय वहां एक जाली नुमा गेट लगा दिया जाए।

 जवाहरलाल नेहरू को यह सलाह पसंद आती है और वह ऐसा ही करने को कहते हैं। साथ ही साथ वे के के नायर का इस्तीफा भी मंजूर नहीं करते।

1950 में हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद फैजाबाद जिला अदालत में एक अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार मांगते हैं और इसके बाद आगे आने वाले 35 सालों तक हिंदू पक्ष और सुन्नी वक्फ बोर्ड उस जगह को अपने हवाले करने का अदालत में दावा करते रहते हैं। मगर कुछ बदलाव नहीं होता, 1976 में पहली बार साइट को एक्सक वेट किया जाता है।

 जिस पर आगे चलकर के के मोहम्मद ने यह भी बताया है मस्जिद जिन 12 पिलर पर बनी हुई थी वो मंदिर के ही अवशेष है।

BJP का मुद्दे को तेजी देना।

 साल 1980 में बीजेपी के सामने आने के बाद राम मंदिर आंदोलन को लेकर चीजें बहुत हद तक बदलने लगती है।

  संघ विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी सब अपनी ओर से प्रयास करते हैं कि राम मंदिर आंदोलन में तेजी आए 1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में कार्यक्रम में यह तय होता है कि मंदिर के लिए सीता मणि से अयोध्या तक रथ यात्रा निकले मगर उसी वर्ष श्री इंदिरा गांधी जी की दिहांत के बाद यह कार्यक्रम टाल दिया जाता है।

 साल 1986 में कुछ ऐसा होता है जिससे देश में राम मंदिर के आंदोलन की दिशा ही बदल जाती है शाहबानो केस की जजमेंट के बाद देश के मुसलमान भड़क जाते हैं और उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी मुसलमानों को खुश करने के लिए संसद में एक कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट देते हैं और राजीव गांधी के इस निर्णय के बाद हिंदू  नाराज हो जाता है। अब हिंदुओं को खुश करने के लिए वह बाबरी मस्जिद का ताला खुलवा कर वहां पर पूजा अर्चना शुरू करवाते हैं।

 इस फैसले से मुस्लमान पक्ष फिर नाराज हो जाता है, और 6 फरवरी 1986 को मुस्लिम लीडर्स बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनवाते हैं।

 1989 में राजीव गांधी ने विश्व हिंदू परिषद को विवादित ढांचे के पास शिलान्यास करने की अनुमति दी 1990 की शुरुआत में द्वारका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सती को उनके समर्थकों के साथ उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार द्वारा अरेस्ट कर लिया जाता है।

भीड़ बेकाबू होने पर कार सेवकों पर गोली चलाई।

 25 सितंबर 1990 में लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या के लिए 10000 किलोमीटर की रथ यात्रा प्रारंभ करते हैं।

 जिसके दौरान ही उनको गिरफ्तार कर लिया जाता है और जिस दिन अयोध्या में यात्रा का समापन होना होता है बहुत बड़ी संख्या में कार सेवक अयोध्या पहुंचकर विवादित ढांचे पर छंडा फिरा देते हैं।

भीड़ बेकाबू  होने पर मुलायम सरकार उन पर बोलिया चलवा देती है। और कई कार सेवक शहीद हो जाते हैं। तारीख 6 दिसंबर 1992 जिसे शौर्य दिवस के नाम से भी जाना जाता है। 

लगभग दो लाख कार सेवक अयोध्या पहुंचते हैं उस वक्त कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री और पीवी नरसिंहा राव देश के प्रधानमंत्री थे कल्याण सिंह ने अदालत को यह भरोसा दिया था कि कार सेवकों द्वारा मस्जिद के ढांचे को कोई नुकसान नहीं होगा उन्होंने पुलिस को भी आदेश दिया था कि भीड़ पर गोली ना चलाए, पर हुआ वही जो निश्चित था।

 6 दिसंबर 1992 की दोपहर 1:30 min. पर पहला गुंबद गिराया जाता है दोपहर 3:30 बजे करीब दूसरा गुंबद गिराया जाता है और शाम 5 बजे तीनों गुंबद गिरा दिए गए और उसी दिन उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया कल्याण सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और इसके बाद चले दंगों में तकरीबन 1000 लोगों ने अपनी जान गवाई मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों में भी 900 लोगों ने अपनी जान गवाई और ना जाने कितने और लोगों ने देश के अलग-अलग प्रांतों में राम मंदिर की लड़ाई के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।

 इतना सब होने के बाद भी देश की अदालत ने 6-7 साल तक इस पर शांति बनाए रखी जब 90 के दशक में भाजपा दोबारा केंद्र में आई तब तमाम हिंदू संगठन राम मंदिर आंदोलन को लेकर फिर से अति सक्रिय हो गए देश भर के अलग-अलग कोनों में चल रहे मामलों को एक जगह लाया गया और वह था अलाहाबाद हाई कोर्ट।

 1993 में सरकार ने एक 67 द सा एकड़ जमीन के अधिग्रहण करने का अध्यादेश जारी किया साल 2002 में वापस इलाहाबाद हाई कोर्ट बाबरी मस्जिद विवाद पर सुनवाई शुरू करता है। 2003 में आर्कलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को इस मामले की जांच करने कहा जाता है।

 एसआई ने अपनी रिपोर्ट में यह साफ कर दिया कि जिस जगह विवादित ढांचा था उसके नीचे मिले दसवीं शताब्दी के मंदिर की अवशेष से यह साबित होता है, कि वहां पहले एक मंदिर था।

राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का आखरी फैसला

 2011 में यह मामला देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाता है। परंतु वहां भी सात सालों तक कोई सुनवाई नहीं होती एक मीडिएट पैनल बनाकर आपसी रजामंदी से इस मामले को हल करने की कोशिश की जाती है। मगर जब कोई फैसला नहीं निकलता तो सुप्रीम कोर्ट से आदेश दिया जाता है कि मामले से जुड़े सारे दस्तावेजों को अंग्रेजी ट्रांसलेशन में लाया जाए 6 अगस्त 2019 से 16 अक्टूबर 2019 तक मामले से जुड़े सभी पक्षों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में पूरी हो जाती है।

  9 नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट से यह फैसला सुनाया जाता है, कि विवादित जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को दे दी जाए उस फैसले में पांच जजों की बेंच सिखों के पहले गुरु गुरु नानक देव जी के 1510 में राम मंदिर जाने का जिक्र भी करती है, और उसके साथ कंपनसेशन के तौर पर सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ जमीन अयोध्या के अंदर दिए जाने का ऐलान करती है।

5 फरवरी 2020 को ट्रस्ट की गठन होने के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाता है। यह कहानी थी 500 साल चले संघर्ष की धार्मिक अस्तित्व की और अटूट विश्वास की और 22 जनवरी 2024 का दिन प्रतीक है उन बलिदानों का जो शतकों से एक ही स्वप्न देखते थे जो था भव्य राम मंदिर श्री राम जी की जन्मभूमि अयोध्या में। इसी के साथ हमारी ये पोस्ट Ayodhya Mandir ki History in Hindi भी खतम हो जाती है।

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FAQ

राम मंदिर की जगह पर पहले क्या था?

राम मंदिर की जगह पर पहले बाबरी मस्जिद थी, जो कि बाबर ने गैर-तरीकों से मंदिर को तुड़वा कर बनवाई थी।

राम मंदिर केस कितने साल पुराना है?

यूं तो बाबर ने 1928 में मंदिर तोड़ कर वहा मस्जिद बनवाई थी पर कानूनी तौर पर ये लड़ाई 134 चली है।

राम मंदिर का निर्माण कब और किसने करवाया?

राजा विक्रमादित्य जब अयोध्या आए तो उन्हें पता चला की ये राम भगवान की जन्मभूमि है, तो उन्होंने राम मंदिर का निर्माण कराया।

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