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13 घंटे पहलेलेखक: शिवेंद्र गौरव
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एक स्कूल की नर्सरी क्लास की फीस की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है। हालांकि इसमें स्कूल का नाम छिपाया गया है, लेकिन इसमें जो फीस लिखी है, वह चौंकाने वाली है। पहले ये फीस देख लीजिए-
इसमें एडमिशन फीस के आगे लिखा है- 55,638 रुपए, कॉशन मनी 30,019 रुपए, एनुअल चार्ज- 28, 314 रुपए, डेवलपमेंट फीस- 13, 948 रुपए, ट्यूशन फीस- 23,737 रुपए और पेरेंट ओरिएंटेशन चार्ज- 8,400 रुपए।
ओरिएंटेशन वह खर्च है, जिसमें स्कूल, बच्चे के पेरेंट्स से बच्चे के बारे में बातचीत करता है। पेरेंट्स का आरोप है कि यह गैरकानूनी फीस है, इसकी 20% रकम यानी करीब 1600 रुपए भी एक बार की डॉक्टर की फीस तक नहीं होती।
दिल्ली के महंगे स्कूलों पर नर्सरी एडमिशन के लिए मनमानी फीस लेने और हर साल फीस में अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी करने के आरोप लगते रहते हैं। हमने इस बारे में दिल्ली के पेरेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष अपराजिता गौतम और दिल्ली के महंगे स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने वाले कई अभिभावकों से बात की।
दिल्ली के स्कूलों में नर्सरी और केजी की क्लास में एडमिशन की प्रक्रिया में क्या खामियां हैं, मनचाहे तरीके से फीस क्यों बढ़ा दी जाती है, इस पर दिल्ली के शिक्षा विभाग का क्या कहना है, इन सभी सवालों के जवाब जानेंगे…
किसी से ओरिएंटेशन के नाम पर पैसे वसूले गए, किसी को कई गुना फीस देनी पड़ी
स्कूलों में फीस की मनमानी वसूली के कई मामले हमारी जानकारी में आए, इनमें से 3 लोगों से हमारी बातचीत हुई-
1. दिव्य मैती, पेरेंट: दिव्य ने बताया, ‘मेरा बच्चा दिल्ली के द्वारका के दिल्ली पब्लिक स्कूल में पढ़ता है। स्कूल ने लगातार नियमों के खिलाफ जाकर फीस बढ़ाई। फीस का मामला दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंचा, लेकिन स्कूल ने कोर्ट के भी आदेश नहीं माने। हम बीते पांच साल से शिक्षा विभाग को मामले में हस्तक्षेप करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है। फीस न देने पर स्कूल से एक साथ कई बच्चों के नाम काट दिए जाते हैं।’ दिव्य ने हमें सबूत के तौर पर कई तस्वीरें, वीडियो और सरकारी दस्तावेज मुहैया करवाए हैं।
दिल्ली के DPS स्कूल के बाहर प्रदर्शन करते अभिभावक
2. विनीत गुप्ता, पेरेंट: विनीत कहते हैं, ‘बच्चों का स्कूल से नाम कटने के बाद जब पेरेंट्स स्कूल में बात करने गए तो स्कूल के बाहर बाउंसर लगाकर हमें रोक दिया गया। हाईकोर्ट की एक कमेटी ने तय किया था कि स्कूल किन मदों में फीस ले सकता है। स्कूलों में नियमों के खिलाफ ओरिएंटेशन फीस ली जा रही है। शिक्षा निदेशालय ने तय किया था कि 2015-16 को आधार बनाकर 10% फीस बढ़ाई जाएगी, 2020 में शिक्षा निदेशालय ने 2018 की फीस पर 10% फीस बढ़ाने की मंजूरी दी थी। जबकि स्कूल इसके पहले भी हर साल 12 से 15% तक फीस बढ़ाते रहे हैं।
हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद स्कूल वाले बीच सेशन में शिक्षा निदेशालय के नियमों के खिलाफ जाकर फीस बढ़ाते हैं। स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया में कोई पारदर्शिता नहीं है, पेरेंट्स को यह नहीं पता चलता है कि किस स्टूडेंट को कितने मार्क्स मिले और ड्रा किस आधार पर निकाला जाता है।’
DPS के बंद गेट के बाहर तैनात बाउंसर, अभिभावकों को पुलिस से मदद मांगनी पड़ी।
3. अपराजिता गौतम, प्रेसिडेंट पेरेंट एसोसिएशन: अपराजिता कहती हैं, ‘दिल्ली में सरकारी जमीनों पर बने प्राइवेट स्कूलों में 2016 से अब तक सभी कानून तोड़ते हुए 300% तक फीस बढ़ा दी गई है। शिक्षा विभाग की प्राइवेट स्कूल ब्रांच मौन रहकर इन गैरकानूनी कामों को मंजूरी दे रही है। ट्यूशन फीस में 2,500 रुपए खाने का जोड़ दिया गया, बच्चे से बात की तो पता चला कि एक बार बिस्किट खाने को दिए थे।’
अपराजिता ने हमसे 18 पन्ने का वह लेटर साझा किया, जो उन्होंने 25 अप्रैल 2024 को दिल्ली शिक्षा विभाग की तब की अपर निदेशक पाटिल प्रांजल को भेजा था। इसमें विस्तार से बताया गया है कि किस तरह मनमाने ढंग से स्कूल की फीस बढ़ाई गई है। अपराजिता ने हमें स्कूलों में एडमिशन की प्रक्रिया में कई बड़ी गड़बड़ियों की भी जानकारी दी है।
फीस बढ़ोत्तरी में वापसी के लिए महाराजा अग्रसेन स्कूल के बाहर प्रदर्शन करते अभिभावक
दिल्ली में नर्सरी एडमिशन की प्रक्रिया
पहले दिल्ली में हर स्कूल नर्सरी और केजी में एडमिशन के लिए हर साल अपनी सीटें अलग-अलग डिक्लेयर करता था। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार आने के बाद इस पूरी एडमिशन प्रक्रिया को सरकार के शिक्षा विभाग के अधीन कर दिया गया। सरकार ने एक साथ सभी स्कूलों की सीटों पर ड्रा निकालकर एडमिशन देने की प्रक्रिया शुरू कर दी।
इसके तहत हर स्कूल की तरफ से शिक्षा विभाग को नर्सरी और केजी की अपनी सीटें घोषित करना जरूरी कर दिया गया। इसी में आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों यानी EWS कैटगरी के बच्चों के लिए 25% सीटें रिजर्व करने का भी नियम लाया गया।
कभी गूगल की ग्लिच तो कभी ड्रा में गड़बड़, सेलेक्शन की प्रक्रिया में 4 बड़ी दिक्कतें
- अपराजिता बताती हैं कि एडमिशन के लिए मंजूरी मिलने के पहले ही सबसे बड़ी दिक्कत फॉर्म भरने की आती है। कई बार तय दायरे के अंदर आने वाला स्कूल ही ऑनलाइन मैप पर दायरे से बाहर बताता है, इसलिए पेरेंट्स उसको अपनी चॉइस नहीं बना पाते। कई बार दायरे से बाहर का स्कूल चॉइस में उपलब्ध दिखाता है। ऐसे में स्कूल के चुनाव के समय ही बहुत दिक्कत होती है।
- कानूनन आधार कार्ड बनवाना अनिवार्य नहीं है, लेकिन स्कूल वाले आधार जमा करने पर अड़े रहते हैं।
- स्कूल की तरफ से यह शर्त है कि बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र (बर्थ सर्टिफिकेट) दिल्ली का ही होना चाहिए।
- स्कूल वाले EWS के कई बच्चों का एडमिशन यह कहकर टाल देते हैं कि अभी जनरल कैटगरी के बच्चों ही ही सीटें नहीं भरी हैं। अभी जनरल कैटगरी के बच्चों का ही ड्रा चल रहा है, बाद में आना। EWS कैटगरी के बच्चों को कई बार पूरे साल स्कूल में एडमिशन लेने के लिए इंतजार करना पड़ता है।
एडमिशन के बदले लाखों की डोनेशन की मांग
अपराजिता 2011 का एक मामला बताती हैं, जब वह अपने बेटे के एडमिशन के लिए दिल्ली के द्वारका इलाके के मैक्सफोर्ट स्कूल गई थीं। वह कहती हैं, ‘एडमिशन कंफर्म होने के बाद हम स्कूल गए थे। हमारे साथ और भी 4 बच्चों के पेरेंट्स थे। हमारे फोन बाहर जमा करवाकर एक कमरे में भेजा गया। जहां हमसे बच्चे के एडमिशन के लिए अगले दिन सुबह 11 बजे तक फीस के अलावा डेढ़ लाख रुपए जमा करने को कहा गया। हमने स्कूल में एडमिशन नहीं लिया।’ अपराजिता के मुताबिक, ऐसे ही एक बच्चे के पेरेंट्स से दिल्ली के द्वारका इलाके के वेंकटेश्वर स्कूल में पैसे की मांग की गई। पेरेंट्स से एडमिशन के बदले उनके वेंकटेश्वर अस्पताल के नाम पर डोनेशन की चेक काटकर घूस का पैसा लिया गया।
EWS सेक्शन के बच्चों को एडमिशन नहीं मिलता, 70% सीटें कम हुईं
सामान्य तौर पर उन सभी स्कूलों में EWS कोटे के तहत गरीब बच्चों के लिए सीटों की व्यवस्था की गई है जिनका रजिस्ट्रेशन दिल्ली विकास प्राधिकरण के तहत हुआ है। ऐसे स्कूलों को DDA से कौड़ियों के दाम पर जमीन मिली थी, तब इन स्कूलों के सामने यह शर्त थी कि वह राइट टू एजुकेशन के तहत गरीब बच्चों को निशुल्क पढाएंगे। हालांकि कई स्तर पर इन बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है, या स्कूल कोई न कोई तरीका निकालकर इन्हें एडमिशन देने से मना कर देते हैं।
अपराजिता कुछ जरूरी आंकड़े देती हैं-
- आज से 3 या 4 साल पहले तक EWS कैटगरी के बच्चों के लिए दिल्ली में 60 हजार से ज्यादा सीटें थीं, जो अब घटकर सिर्फ 20 हजार के आसपास रह गई हैं। EWS कैटगरी के तहत दिल्ली के सबसे महंगे स्कूलों में एडमिशन चाहने वाले 10 में से करीब 3 बच्चों को ही एडमिशन मिलता है।
- नर्सरी और केजी में एडमिशन के लिए EWS कैटगरी के बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित की गई हैं, लेकिन करीब 10 से 12% सीटों पर ही EWS कैटगरी के बच्चों को एडमिशन मिल पाता है।
- जनरल कैटगरी के बच्चे फीस देते हैं। इन बच्चों की फीस से ही EWS के बच्चों की फीस और बाकी स्कूली खर्चे चलते हैं। पर्याप्त पैसा आने के बावजूद स्कूल वाले EWS कैटगरी में एडमिशन नहीं लेते। दिल्ली के महंगे स्कूलों ने मिलकर एक मंच तैयार किया है, जिसे एक्शन कमेटी कहते हैं। यह कमेटी कोर्ट में EWS के बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के खिलाफ दावा कर चुकी है।
फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर पात्र बच्चों के साथ नाइंसाफी
कई बार EWS का सर्टिफिकेट बनवाने में धांधली के चलते भी पात्र बच्चे EWS कैटगरी में फायदा नहीं ले लाते। अपराजिता उदाहरण देते हुए कहती हैं कि दिल्ली में द्वारका के पास नजफगढ़ का इलाका लगता है। मेरी जानकारी में कई केस ऐसे भी हैं जिनमें बच्चे के पेरेंट्स के पास नजफगढ़ में काफी जमीन या संपत्ति है, लेकिन फर्जी EWS सर्टिफिकेट बनवाकर उनके बच्चे फायदा उठा रहे हैं, जबकि ऐसे बच्चे रह जाते हैं, जिन्हें असल में फायदे की जरूरत है। सिर्फ कुछ हजार रुपए खर्च करके EWS सर्टिफिकेट बन जाता है। इसलिए मैं लगातार कहती आई हूं कि EWS कैटगरी के बच्चों के सर्टिफिकेट की जांच होनी चाहिए।
दिल्ली सरकार के दावे के उलट 300% तक फीस बढ़ी, गैरकानूनी तरीके से लिया जाता है पैसा
स्कूल की फीस 6 चरणों में ली जाती है। फीस बढ़ाने के मामले में हाईकोर्ट साफ कह चुकी है कि एडमिशन फीस 200 रुपए, रजिस्ट्रेशन फीस 500 रुपए आर कॉशन मनी 500 रुपए से ज्यादा नहीं हो सकती। यह पैसा कुल मिलाकर 750 रुपए बनता है, लेकिन स्कूल इसका कई गुना पैसा वसूल रहे हैं।
इन तीन मदों के अलावा स्कूलों में ट्यूशन फीस, एनुअल फीस और डेवलपमेंट फीस ली जाती है। इसमें कई बार वह पैसे भी ले लिए जाते हैं, जिनकी सुविधा स्कूल नहीं देता।
अपराजिता बताती हैं कि उनकी बेटी की ट्यूशन फीस अचानक 5000 रुपए से बढ़ाकर 7500 रुपए कर दी गई। जब पता किया तो बताया गया कि इसमें खाने का पैसा जोड़ा गया है। जबकि बेटी को स्कूल में सिर्फ एक बार केला और एक बार 3 रुपए के बिस्किट का पैकेट दिया गया था।
मनमानी फीस और एडमिशन प्रक्रिया में गड़बड़ी के आरोपों को लेकर हमने दिल्ली सरकार की शिक्षा निदेशक वेदिता रेड्डी के कार्यालय के नंबरों पर फोन करने की कोशिश की। उनकी सहयोगी से निदेशक से बात करने का समय मांगा, लेकिन फिलहाल निदेशक से हमारी बात नहीं हो सकी। हमने उन्हें मेल पर सवाल भेज दिए हैं, जवाब आते ही हम अपडेट करेंगे।
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