Paper Leak Episode 4 Special Series Jharkhand SSC Exam Hold for 9 Years Chandan Kumar | ऐसे काम को मजबूर कि बताने में शर्म आती है: पढ़ाई के लिए खेत, भैंस सब बिक गए; पेपर लीक से 9 साल से भर्ती अटकी

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37 मिनट पहले

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‘आज से करीब 9 साल पहले। 2015 में ग्रेजुएशन पूरा करते ही मैंने झारखंड CGL एग्‍जाम दिया। जिस दिन इसका प्रीलिम्‍स रिजल्‍ट जारी होना था, मैं सुबह से ही नहा-धोकर गांव के इकलौते इंटरनेट कैफे पहुंच चुका था। रिजल्‍ट में अपना नाम देखा तो खुशी से उछल पड़ा, पर मुझे अंदाजा नहीं था कि ये मेरी खुशकिस्‍मती नहीं बदनसीबी थी क्‍योंकि आज 9 साल बाद भी मेन्‍स का एग्‍जाम नहीं हो पाया है। इन 9 साल में 5 बार एग्‍जाम की डेट निकली। हर बार फीस भरी, पर हर बार एग्‍जाम कैंसिल हुआ।

इसी साल 28 जनवरी और 8 फरवरी को पेपर हुआ। मैं पेपर देकर कोडरमा से रांची लौट रहा था। दोस्‍तों के बीच पेपर पर डिस्‍कशन चल रहा था। मैंने यूं ही JSSC की वेबसाइट ओपन की। वेबसाइट पर नोटिस लगा था कि पेपर लीक हो गया है और परीक्षा कैंसिल हो गई है।

इस एक भर्ती के इंतजार में मेरी उम्र 18 से 27 हो गई, मगर इंतजार अभी भी जारी है। अब लगता है जैसे पूरी जिंदगी ही इस पेपर लीक की भेंट चढ़ गई।’

27 बरस के चंदन कुमार अपनी कहानी बताते हुए रुआंसे हो गए। अपने हाथ में डिग्रियां और झारखंड CGL भर्ती नोटिफिकेशन के कागज लिए हुए हैं। इन्‍हीं कागजों में एक कोर्ट नोटिस भी है, जो पेपर लीक का विरोध करने के चलते उन पर हुए मुकदमे का है।

JSSC दफ्तर पर धरना देने के चलते चंदन पर 133 अलग-अलग धाराओं में मुकदमा भी दर्ज है।

JSSC दफ्तर पर धरना देने के चलते चंदन पर 133 अलग-अलग धाराओं में मुकदमा भी दर्ज है।

पेपर लीक के चौथे एपिसोड के लिए मैं झारखंड की राजधानी रांची पहुंची। यहां मेरी मुलाकात चंदन कुमार से हुई। एक छोटे से कमरे में एक ओर फोल्डिंग बेड और दूसरी ओर किचन। इन्‍हीं के बीच उनकी किताबें और अखबार बिखरे पड़े हैं। मेरे आने पर एक कोना साफ करते हैं और मुझे बिठाते हैं।

‘पैसों की कमी की वजह से अब तक बहन की शादी नहीं हो पाई’
चंदन के पिता किसान हैं। घर पर एक बहन है, जिसकी शादी पैसों की कमी की वजह से रुकी है। एक अच्‍छे घर में रिश्‍ते की बात हुई थी, मगर खर्च पर बात अटक गई। घर के बारे में वो और बात नहीं करते। पूछने पर भी झिझकते हैं और जवाब नहीं देते। मुझे अपने डॉक्‍यूमेंट्स दिखाकर कहते हैं, ‘मैंने 3 अलग-अलग सब्‍जेक्‍ट्स में मास्‍टर्स किया है। CTET और UGC NET क्‍वालिफाइड हूं। ग्रेजुएशन के बाद से ही सरकारी नौकरियों की तैयारी में लगा हूं। पर परीक्षा ही नहीं होती।

2015 में ग्रेजुएट्स के लिए ऑफिसर की 1150 वैकेंसी निकली थीं। एक हजार रुपए की फीस देकर फॉर्म भरा। अगले साल प्रीलिम्‍स एग्‍जाम हुआ जिसमें मेरा सिलेक्शन हो गया। मगर मेन्स एग्जाम से ठीक 8 दिन पहले पेपर कैंसिल कर दिया गया।

फिर 2017, 2019, 2022 में रीएग्‍जाम के नोटिस जारी हुए। हर बार फीस भरी, लेकिन हर बार एग्‍जाम कैंसिल होता रहा। मैं इस उम्‍मीद में तैयारी में लगा रहा कि देर से ही सही, एग्जाम तो होगा ही। लेकिन 16 दिसंबर 2021 को झारखंड में नियोजन नीति लागू हो गई और पहले से चल रहीं सभी भर्तियां रद्द कर दी गईं।

नियोजन नीति के विरोध में पतरातू समेत कई इलाकों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए थे।

नियोजन नीति के विरोध में पतरातू समेत कई इलाकों में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए थे।

ये हमारे साथ धोखा था। भला हमारी क्‍या गलती।’ कहते हुए चंदन झुंझलाते हैं। ‘एक तो वैसे ही कोई वैकेंसी नहीं निकलती और जो निकलती है उसे कैंसिल कर दिया जाता है।’

‘पेपर देकर लौट ही रहा था कि पेपर लीक की खबर मिल गई’
‘लेकिन हमने हार नहीं मानी। JSSC भवन पर जाकर प्रदर्शन किया तो नोटिफिकेशन एक बार फिर जारी हुआ। 28 जनवरी और 8 फरवरी को एग्‍जाम होना था। मेरा सेंटर कोडरमा के झुमरी तलैया में था। मैं रांची से एग्जाम देने कोडरमा गया। जब एग्‍जाम देकर वापस आ रहा था तो JSSC की वेबसाइट पर नोटिफिकेशन देखा कि पेपर लीक हो गया है और पेपर 3 को रद्द कर दिया गया है।

ऐसा लगा कि हमारे साथ धोखे पर धोखा हो रहा है। अब सवाल ये भी था कि जब पेपर लीक होता है तो सिर्फ एक पेपर लीक नहीं होता, बल्कि पूरा पेपर लीक होता है। सिर्फ एक पेपर कैंसिल क्‍यों किया गया। हमने फिर JSSC भवन पर प्रदर्शन किया। पेपर तो स्‍थगित हो गया, लेकिन JSSC ने हमारे ऊपर 13 अलग-अलग धाराओं में केस कर दर्ज कर दिया।

‘मुकदमा खत्‍म करने के लिए 80 हजार रुपए कहां से लाते’
मैंने केस खत्म करने के लिए वकील से बात की तो उसने बताया कि 80 हजार में केस खत्म हो जाएगा। इतने पैसे मेरे पास कहां। जिसके पास फार्म भरने के पैसे नहीं हैं वो 80 हजार कहां से लाएगा। जिनके पास पैसा है वो पेपर खरीद कर नौकरी कर रहे हैं और हम कोर्ट-कचहरी के चक्‍करों में फंस गए।’

बताते बताते चंदन भावुक हो जाते हैं। भारी आवाज में कहते हैं, ‘हम गांव से रांची पढ़ने आए हैं। कई बार कोचिंग और कॉलेज की फीस भरने के लिए पिताजी ने अपनी गाय-बकरी, यहां तक कि खेत भी बेचे दिए। सिर्फ इस उम्‍मीद में कि सरकारी नौकरी हो जाए। 3 साल से घर नहीं गया कि लौटकर किसी को क्या चेहरा दिखाऊंगा। बस तैयारी पर तैयारी किए जा रहे हैं, पेपर का कोई अता-पता नहीं।’

चंदन संकोच करते हुए कहते हैं, ‘सपना तो ऑफिसर बनने का था, मगर अब अपना खर्च चलाने के लिए ऐसे छोटे-मोटे काम कर रहे हैं। क्‍या काम करते हैं इसके जवाब में वो कहते हैं ‘ये मत पूछिए, गांव-घर के लोग जान जाएंगे तो बातें बनाएंगे।’

हालांकि वो कोई अवैध काम नहीं करते। हजारों युवा देश में ऐसे ही काम करके अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं, मगर वो हमसे ये बात छिपाने को ही कहते हैं।

चंदन आसपास के बच्‍चों को ट्यूशन भी पढ़ाते हैं।

चंदन आसपास के बच्‍चों को ट्यूशन भी पढ़ाते हैं।

परीक्षा कराने वाली एजेंसी JSSC से नाराज चंदन अकेले स्‍टूडेंट नहीं हैं। शहर में निकली तो देखा राजभवन के पास पंडाल लगाकर कई स्‍टूडेंट्स प्रदर्शन कर रहे थे। मेरी नजर एक दिव्‍यांग अभ्‍यर्थी पर पड़ी जो बेहद परेशान था। एक बगल में बैसाखी और दूसरे कंधे पर बैग। मैंने परेशानी का कारण पूछा ही था कि वो फफक कर रोने लग गया। मैंने उसे पानी पिलाया। नाम पूछा तो उसने अपना नाम अनिल दांगे बताया।

नाम पूछने भर से ही अनिल दांगे फूट-फूटकर रोने लगे।

नाम पूछने भर से ही अनिल दांगे फूट-फूटकर रोने लगे।

चतरा जिला के अनिल दांगे बताते हैं, ‘मेरा 2017 में TGT का एग्जाम हुआ था। रिजल्ट 6 साल बाद 2023 में निकला। इसमें मेरा सिलेक्शन हो गया, लेकिन किसी भी माध्यम से मुझे इसकी जानकारी नहीं मिली। जुलाई 2024 में किसी ने मुझे बताया कि रिजल्ट में मेरा भी नाम है। मैं भागकर JSSC ऑफिस पहुंचा लेकिन…’ इतना कहते ही अनिल फिर रोने लगते हैं।

‘…लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। एक तो 6 साल के बाद रिजल्ट घोषित होता है उसमें भी मुझे किसी भी तरीके से इन्फॉर्म नहीं किया गया। मेरे घर की स्थिति इस समय बहुत खराब है। मेरे भाई की करंट लगने से डेथ हो गई। घर में भाभी हैं, उनकी दो छोटी बच्ची हैं और साथ में बूढ़े मां-बाप जिनका एकमात्र सहारा मैं हूं।

4 महीने से मैं लगातार रांची आ रहा हूं। इसी उम्मीद से कि कोई मेरी बात सुनेगा और मेरी परेशानी खत्म होगी। मेरी जेब में पैसे नहीं होते, कभी रेलवे स्टेशन पर सोना पड़ता है तो कभी सड़क पर रहता हूं। मेरे पास तो खाना खाने के भी पैसे नहीं हैं, मेरी स्थिति देखकर मां बाप भी रोते हैं।’

‘6 साल बाद अचानक रिजल्‍ट आया, मेरे पास फोन तक नहीं था’
अनिल अपने गांव बेलहर के बारे में जिक्र करते हुए बताते हैं, ‘यहां बिजली की बहुत समस्या है। ज्यादातर वक्त बिजली नहीं रहती और मोबाइल का नेटवर्क भी नहीं मिलता। जिस वक्त रिजल्ट निकला मेरे पास स्मार्टफोन नहीं था। रिजल्ट निकलने के बाद JSSC को सभी के घर पोस्ट द्वारा रिजल्ट भेजना चाहिए था या मैसेज भेजकर भी बता सकते थे, लेकिन न मुझे रिजल्ट निकलने का पता चला और न किसी ने बताया।

अनिल के भाई की पिछले साल करंट लगने से मौत हो गई। अब भाभी, उनकी दो बेटियां और माता-पिता की जिम्‍मेदारी उन्‍हीं पर है।

अनिल के भाई की पिछले साल करंट लगने से मौत हो गई। अब भाभी, उनकी दो बेटियां और माता-पिता की जिम्‍मेदारी उन्‍हीं पर है।

अभी भी कई लोगों के डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन हो रहे हैं। मैं बस यही चाहता हूं कि एक बार मुझे भी मौका मिलना चाहिए।’

इसके बाद मैं मंच पर बैठकर प्रदर्शन कर रहे स्‍टूडेंट्स की तरफ मुड़ी। मंच के कोने में मच्छरदानी भी लगी है। कुछ छात्रों की रात यहीं गुजरती है। कैमरा और माइक देखकर उनकी आंखों में चमक आ जाती है और हमारी बातचीत शुरू होती है।

37 साल के हीरालाल साहा बताते हैं, ‘शादी हो गई है, बच्‍चे हो गए हैं, मां-बाप बूढ़े हो गए हैं, मगर अब तक हमारे पास नौकरी नहीं है। 9 महीने पहले ITI प्रशिक्षण अधिकारी भर्ती का पेपर दिया था। रिजल्‍ट का कोई अता-पता नहीं है।

गांव में मेरा घर खप्पर से बना है। हर बार बरसात में उसके ऊपर 2 हजार रुपए का प्लास्टिक खरीद कर डालता हूं ताकि घर में पानी न आए। हर साल चूहे प्लास्टिक कुतर देते हैं और हर साल हमें नया प्लास्टिक खरीदना पड़ता है। हर बार सोचते हैं कि इस साल नियुक्ति हो जाएगी और मैं घर बना लूंगा। इसी आस में अभी तक घर नहीं बन पाया है।’ बोलते बोलते हीरालाल की आंखों में पानी भर आता है।

एक और कैंडिडेट नीलकमल बताते हैं, ‘घर की रोटी खेती बाड़ी से चलती है और पढ़ाई बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं। पहले वैकेंसी के लिए आंदोलन करते हैं, फिर वैकेंसी आती है तो कैंसिल हो जाती है। साल-साल करते हुए पूरी उम्र बीत गई। अब तो लगता है आत्महत्या करने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा रास्ता ही नहीं है।’

झारखंड में करीब 10 सालों से ऑफिसर के पदों पर भर्ती के लिए CGL परीक्षा का आयोजन हो रहा है, लेकिन कई कारणों से ये पूरी नहीं हो पाई है। बार-बार परीक्षा की प्रक्रिया शुरू होती है और बाद में किसी कारण से रद्द हो जाती है। 2015 में इस परीक्षा में शामिल होने वाले हजारों स्टूडेंट्स की उम्र सीमा भी खत्म हो गई। समय-समय पर सरकार उम्र सीमा में थोड़ी छूट भी देती है, मगर एग्‍जाम ही नहीं हो रहा तो स्‍टूडेंट्स छूट का क्‍या करें।

इस दौरान झारखंड में 4 मुख्‍यमंत्री के चेहरे, 5 राज्यपाल, 6 JSSC के अध्यक्ष बदल गए, लेकिन स्‍टूडेंट्स वहीं के वहीं हैं। चंदन जैसे सैकड़ों स्‍टूडेंट्स हैं जिनकी पूरी जवानी पेपर लीक और आयोग की गड़बड़‍ियों की भेंट चढ़ गईं।

इस सीरीज के बाकी एपिसोड भी देखें…

एपिसोड 1 : डिग्रियां जलाकर फंदे से झूल गया बृजेश:7 साल तैयारी की, आखिरी कोशिश में पर्चा लीक; पेपर लीक से तबाह परिवार की क‍हानी

रात करीब 10 बजे का वक्त। यूपी में कन्‍नौज के भूड़पूरवा गांव में 27 साल का बृजेश बिना प्‍लास्‍टर वाले अपने कमरे में दाखिल हुआ और दरवाजे की कुंडी लगा ली। उसके हाथ में B.Sc की डिग्री थी।

बृजेश ने जेब से माचिस निकाली और अपनी डिग्री में आग लगा दी। बृजेश ने सामने तख्त पर पड़ा अपनी बहन का दुपट्टा उठाया और उसे गले से लपेट लिया। जली हुई डिग्री की राख को पैरों से रौंदा और तख्त पर चढ़ गया। आखिर में दुपट्टे का दूसरा सिरा पंखा लटकाने के लिए लगे हुक से बांधकर खुद लटक गया। पूरी कहानी पढ़िए…

एपिसोड 2 : नारे लगाए तो हत्या की कोशिश के मुकदमे लादे : अब अदालतों के चक्कर काट रहे; नौकरी मिली भी तो पुलिस वेरिफिकेशन में फंसेंगे

‘पुलिस ने हमें दौड़ा-दौड़ाकर लाठियों से पीटा। अटेम्प्ट टु मर्डर यानी हत्या की साजिश और दंगे भड़काने जैसे गंभीर मुकदमे लाद दिए। हम तो पेपर लीक की शिकायत कर रहे थे, खुद विक्टिम थे। उल्‍टा हमें ही सात दिनों के लिए जेल में डाल दिया गया। अब परिवार ने भी मुंह मोड़ लिया है। एक तरफ सरकारी नौकरी की उम्र निकली जा रही है और दूसरी तरफ डर लगता है कि नौकरी मिल भी गई तो पुलिस वेरिफिकेशन में हमें फंसा देगी।

हर बार फॉर्म भरते समय ये बताना पड़ता है कि हम अपराधी नहीं हैं। हम पर लगे आरोप साबित नहीं हुए हैं। कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते-काटते हम तंग आ गए हैं। सोचा नहीं था कि पेपर लीक का विरोध करने पर पुलिस हमारे साथ ये सलूक करेगी। जिंदगी तबाह हो गई है।’ पूरी कहानी पढ़िए…

एपिसोड 3 : “सॉरी पापा, कुछ नहीं कर पाया, लव स्‍नेहा’ : लगातार दूसरा पेपर लीक होने पर कन्‍हैया ने जहर खाया; अब गांव में कोई तैयारी नहीं करता

जयपुर से 300 किलोमीटर दूर है हनुमानगढ़ का मंदरपुरा गांव। दिल्‍ली से करीब 16 घंटे सफर कर मैं यहां पहुंची। तंग गली के आखिर में बड़े से दरवाजे का एक मकान। मैं काफी देर दरवाजा खटखटाती रही, लेकिन कोई बाहर नहीं आया।

मैंने आसपास के लोगों से पूछा- ‘घर के अंदर लोग तो हैं न, फिर कोई दरवाजा क्यों नहीं खोल रहा।’

एक शख्स ने बताया- ‘घर के अंदर लोग तो हैं, लेकिन उनकी जिंदगी खालीपन से भर गई है। बहुत नाउम्मीद हो गए हैं। हाल ही में इन लोगों ने जवान बेटा खोया है। अब ये लोग किसी से बात नहीं करते, बेटे के बारे में तो बिल्कुल नहीं।’ पूरी कहानी पढ़िए…

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